वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025: विस्तृत विश्लेषण

भारत में वक़्फ़ प्रशासन का एक नया अध्याय

HINDI

Nadeem Sultan Nomani

4/22/20251 min read

people walking near white concrete building during daytime
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परिचय

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025, जिसे आधिकारिक तौर पर यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट (UMEED एक्ट), 1995 के रूप में नामित किया गया है, भारत सरकार द्वारा 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था। यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने और मुस्सलमान वक्फ अधिनियम, 1923 को निरस्त करने के उद्देश्य से लाया गया। अप्रैल 2025 में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन गया। इस विधेयक ने व्यापक बहस को जन्म दिया, जिसमें सरकार ने इसे पारदर्शिता और सुशासन के लिए आवश्यक बताया, जबकि विपक्ष और मुस्लिम समुदाय ने इसे धार्मिक स्वायत्तता पर हमला करार दिया। यह लेख विधेयक के प्रमुख संशोधनों, सरकार के दावों, विपक्ष और मुस्लिम समुदाय के विरोध, कानूनी और संवैधानिक पृष्ठभूमि, लाभ, चुनौतियों, और सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करता है।

प्रमुख संशोधन

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में निम्नलिखित प्रमुख बदलाव किए गए हैं:

  1. केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति:

    • पहले, केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम सदस्य ही हो सकते थे। नए कानून में 22 सदस्यों वाले केंद्रीय वक्फ परिषद में 2 गैर-मुस्लिम और 11 सदस्यों वाले राज्य वक्फ बोर्ड में 2 गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है।

  2. वक्फ बाय यूजर की अवधारणा को हटाना:

    • पहले, लंबे समय तक धार्मिक या सामाजिक उपयोग में रही संपत्तियों को बिना लिखित दस्तावेज के भी वक्फ माना जाता था। इस प्रावधान को हटा दिया गया है, जिससे लगभग 4 लाख ऐसी संपत्तियों का वक्फ दर्जा खतरे में है।

  3. जिला कलेक्टर को सर्वेक्षण और विवादित संपत्तियों पर निर्णय का अधिकार:

    • अब जिला कलेक्टर या समकक्ष अधिकारी वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करेंगे और सरकारी संपत्तियों पर दावों का अंतिम निर्णय लेंगे। पहले यह अधिकार वक्फ बोर्ड के पास था।

  4. महिलाओं और अल्पसंख्यक संप्रदायों का प्रतिनिधित्व:

    • केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व अनिवार्य किया गया है। बोहरा, अघाखानी, शिया, और सुन्नी संप्रदायों के लिए अलग-अलग बोर्ड का प्रावधान भी शामिल है।

  5. डिजिटल पोर्टल और पारदर्शिता:

    • वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल बनाया गया है, जिसमें मालिकाना हक, लेखा-जोखा, और ऑडिट की जानकारी दर्ज होगी।

  6. वक्फ ट्रिब्यूनल की संरचना में बदलाव:

    • ट्रिब्यूनल में मुस्लिम कानून के विशेषज्ञ को हटा दिया गया है। अब इसमें जिला न्यायाधीश, संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी, और कानूनी विशेषज्ञ शामिल होंगे। ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

  7. वक्फ संपत्तियों पर लिमिटेशन एक्ट, 1963 की लागूता:

    • पहले वक्फ संपत्तियों पर 12 साल की सीमा अवधि लागू नहीं थी। अब इसकी लागूता से अतिक्रमण के पुराने मामले प्रभावित हो सकते हैं।

  8. केवल 5 वर्ष से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम ही वक्फ बना सकते हैं:

    • वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम 5 वर्ष तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होना होगा। यह नियम 2013 से पहले भी था, जिसे अब बहाल किया गया है।

सरकार के दावे और समर्थन में तर्क

भारत सरकार, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), ने इस विधेयक को वक्फ प्रबंधन में सुधार के लिए आवश्यक बताया है। प्रमुख दावे और तर्क निम्नलिखित हैं:

  • पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकार का कहना है कि डिजिटल पोर्टल और नियमित ऑडिट से वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोका जाएगा। इससे प्राप्त आय का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरीब मुस्लिमों के कल्याण के लिए होगा।

  • महिलाओं और अल्पसंख्यक संप्रदायों का सशक्तिकरण: विधेयक में महिलाओं और विभिन्न मुस्लिम संप्रदायों (शिया, सुन्नी, बोहरा, आदि) के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने का दावा किया गया है, जिससे समावेशिता बढ़ेगी।

  • वक्फ बोर्ड का दुरुपयोग रोकना: सरकार का तर्क है कि कुछ वक्फ बोर्डों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सरकारी और निजी संपत्तियों को वक्फ घोषित किया। जिला कलेक्टर को अधिकार देने से यह समस्या हल होगी।

  • आर्थिक और सामाजिक लाभ: वक्फ बोर्डों को 7% के बजाय 5% अनिवार्य योगदान देना होगा, जिससे उनकी आय बढ़ेगी और सामाजिक कल्याण योजनाओं को बल मिलेगा।

  • संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण: सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक संस्था है, न कि धार्मिक। इसलिए, गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा, “यह विधेयक मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता। यह केवल प्रशासनिक सुधार के लिए है।”

विपक्ष और मुस्लिम समुदाय का विरोध

विपक्षी दलों (कांग्रेस, AIMIM, TMC, DMK, आदि) और मुस्लिम संगठनों (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, आदि) ने इस विधेयक को असंवैधानिक और मुस्लिम विरोधी करार दिया है। प्रमुख आपत्तियाँ निम्नलिखित हैं:

  • धार्मिक स्वायत्तता पर हमला: विपक्ष का तर्क है कि गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति और वक्फ बाय यूजर को हटाना संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

  • मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर धकेलना: AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे “वक्फ बर्बाद बिल” करार देते हुए कहा कि यह मुस्लिमों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाने की साजिश है।

  • वक्फ संपत्तियों का संभावित हस्तांतरण: वक्फ बाय यूजर के हटने से ऐतिहासिक मस्जिदों, दरगाहों, और कब्रिस्तानों का वक्फ दर्जा खत्म हो सकता है, जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में है।

  • बिना परामर्श के लागू करना: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आरोप लगाया कि विधेयक को मुस्लिम समुदाय के साथ उचित परामर्श के बिना पारित किया गया।

  • संवैधानिक उल्लंघन: विपक्ष ने तर्क दिया कि यह विधेयक अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 29 (सांस्कृतिक अधिकार) का उल्लंघन करता है।

कानूनी और संवैधानिक पृष्ठभूमि

वक्फ इस्लामी कानून का हिस्सा है, जिसमें संपत्ति को धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए समर्पित किया जाता है। यह संपत्ति अहस्तांतरणीय होती है। वक्फ अधिनियम, 1995 ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड की स्थापना की थी।

संवैधानिक रूप से, अनुच्छेद 26 धार्मिक समुदायों को अपनी धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है। विपक्ष का तर्क है कि गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति और सरकारी हस्तक्षेप इस अधिकार का उल्लंघन करता है। दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक संस्था है, और इसका धर्मनिरपेक्ष प्रशासन संविधान के अनुरूप है।

सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में वक्फ कानूनों की वैधता को बरकरार रखा है। उदाहरण के लिए, अयोध्या (राम जन्मभूमि) मामले में वक्फ बाय यूजर की अवधारणा को मान्यता दी गई थी।

लाभ (सरकार के दृष्टिकोण से)

सरकार के अनुसार, यह विधेयक निम्नलिखित लाभ प्रदान करेगा:

  • बेहतर प्रबंधन: डिजिटल पोर्टल और ऑडिट से वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन पारदर्शी होगा।

  • महिलाओं का सशक्तिकरण: महिलाओं को विरासत में हिस्सा और बोर्ड में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा।

  • विवादों का समाधान: जिला कलेक्टर और हाई कोर्ट में अपील का प्रावधान विवादों को तेजी से हल करेगा।

  • सामाजिक कल्याण: वक्फ संपत्तियों की आय से शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरीब मुस्लिमों के लिए योजनाएँ लागू होंगी।

मुस्लिम विद्वानों द्वारा उठाए गए मुद्दे और चुनौतियाँ

मुस्लिम विद्वानों और संगठनों ने निम्नलिखित मुद्दों को उठाया है:

  • धार्मिक स्वायत्तता का हनन: गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति से वक्फ बोर्ड की धार्मिक प्रकृति प्रभावित होगी।

  • वक्फ संपत्तियों का नुकसान: वक्फ बाय यूजर के हटने से ऐतिहासिक संपत्तियाँ सरकारी या निजी हाथों में जा सकती हैं।

  • कानूनी अस्पष्टता: सरकारी अधिकारियों को असीमित शक्ति देने से पक्षपात की आशंका है।

  • सामुदायिक विश्वास की कमी: बिना परामर्श के कानून लागू करने से मुस्लिम समुदाय में अविश्वास बढ़ा है।

मुस्लिम समुदाय की अपेक्षाएँ और माँगें

मुस्लिम समुदाय और संगठनों ने निम्नलिखित माँगें रखी हैं:

  • वक्फ बाय यूजर की बहाली: ऐतिहासिक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए इस प्रावधान को फिर से शामिल करना।

  • गैर-मुस्लिम नियुक्तियों को रद्द करना: वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम सदस्यों को रखने की माँग।

  • सामुदायिक परामर्श: भविष्य में किसी भी संशोधन से पहले मुस्लिम संगठनों के साथ व्यापक चर्चा।

  • सुप्रीम कोर्ट से राहत: कानून के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की उम्मीद।

सुप्रीम कोर्ट से राहत की संभावना

सुप्रीम कोर्ट में 73 से अधिक याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनमें असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे याचिकाकर्ता शामिल हैं। कोर्ट ने 16 अप्रैल 2025 को पहली सुनवाई की और सभी याचिकाओं को “इन रे: वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025” के तहत समेकित किया।

  • कोर्ट की टिप्पणियाँ: मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने वक्फ बाय यूजर को हटाने पर चिंता जताई और कहा कि यह ऐतिहासिक संपत्तियों का दर्जा खत्म कर सकता है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिमों को शामिल किया जाएगा।

  • अंतरिम आदेश: कोर्ट ने 17 अप्रैल 2025 को आदेश दिया कि 5 मई तक कोई भी वक्फ संपत्ति (पंजीकृत, अपंजीकृत, या वक्फ बाय यूजर) डिनोटिफाई, बदली, या हस्तक्षेपित नहीं होगी।

  • संभावित राहत: कोर्ट कुछ प्रावधानों, जैसे वक्फ बाय यूजर का हटना और गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति, को स्थगित कर सकता है या उन्हें असंवैधानिक घोषित कर सकता है।

वर्तमान परिदृश्य और सुप्रीम कोर्ट की राय

वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है। केंद्र सरकार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से तर्क दिया है कि यह कानून पारदर्शिता के लिए है और लाखों लोगों की शिकायतों का जवाब देता है। हालांकि, कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर चिंता जताई है, विशेष रूप से वक्फ बाय यूजर और गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर। कोर्ट ने हिंसा की खबरों (जैसे, मुर्शिदाबाद में) को “बेहद परेशान करने वाला” बताया।

सात राज्य (हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आदि) ने इस कानून का समर्थन किया है, जबकि विपक्षी नेता और मुस्लिम संगठन इसे रद्द करने की माँग कर रहे हैं। कोर्ट ने सरकार को एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

निष्कर्ष

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 ने भारत में धार्मिक स्वायत्तता, संवैधानिक अधिकारों, और सामाजिक समावेशिता को लेकर गहन बहस छेड़ दी है। सरकार इसे सुशासन और पारदर्शिता का कदम बताती है, जबकि विपक्ष और मुस्लिम समुदाय इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस मामले में निर्णायक होगी, और यह देखना बाकी है कि क्या यह कानून अपनी मौजूदा शक्ल में बरकरार रहेगा या इसमें बदलाव होंगे।

संदर्भ

-: PRS India, The Waqf (Amendment) Bill, 2024
-: Supreme Court Observer, Constitutionality of the Waqf (Amendment) Act, 2025
-: Wikipedia, The Waqf (Amendment) Act, 2025
-: The Times of India, What is Waqf (Amendment) Bill?
-: Supreme Court Observer, Day 1 Hearing
-: India Today, Waqf Amendment Act legal battle
-: Hindustan Times, Waqf amendment bill
-: The Times of India, Waqf Amendment Act Hearing Live Updates

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